Manushya Gaurav din Dadaji birthday 2021

-

मनुष्य गौरव दिन की जानकारी

क्या आपको पता है की मनुष्य गौरव दिन ( 19 October – Manushya Gaurav din ) क्यों मनाया जाता है ? कैसे मनाया जाता है. पांडुरंग शास्त्री यानि दादाजी कौन थे? स्वाध्याय परिवार क्या है? जय योगेश्वर भगवान से दादाजी का क्या नाता है ? आईये आज हम इस ( Manushya Gaurav din Dadaji birthday ) जानकारी को आपके साथ साझा करते है? अगर आपको पसंद आये तो अपने परिवार के साथ whatsapp – facebook पर शेयर जरुर करे.

हम आपके लिए एक नए लेख में manushya gaurav din Mp3 song, Bhavgeet, Images, Photos, Ringtone, मनुष्य गौरव दिन का वीडियो, Hindi, Gujarati, Marathi, English में प्रस्तुत करेंगे.

Happy Manushya Gaurav Din

पांडुरंग शाश्त्री दादाजी जन्म जयंती manushya gaurav din ki jankaari

स्वाध्याय परिवार क्या है?

वसे पूरा स्वाध्याय परिवार किसी विशेष परिचय का मोहताज नहीं है. क्योकि भारत में सेंकडो में कई पंथ – संप्रदाय और अन्य धार्मिक गतिविधियाँ करनेवाले समूह है. लेकिन इन सबसे स्व के अभ्यास से सर्वस्व का हित चाहने वाला कोई है तो वो है स्वाध्याय परिवार. इसका कोई भी कार्यक्रम न किसी फोटोग्राफी के लिए है ना किसी टीवी के न्यूज़ के लिए है और न ही किसी Newspaper की हेडलाईन के लिए होता है. सिर्फ और सिर्फ एक परिवार के लिए होता है. और इसमे सारा विश्व परिवार है.

पांडुरंग शास्त्री यानि दादाजी कौन थे?

पांडुरंग आठवले के परिचय के बिना शायद ही कोई भारतीय परिवार होगा। कभी-कभी हम ‘जय-योगेश्वर’ बोलनेवाले किसी व्यक्ति से भी मिलते हैं तो हमें तुरंत मालूम हो जाता है की ये पांडुरंग शास्त्री आठवले के स्वाध्याय परिवार के विचारो से तृप्त है. पांडुरंग शाश्त्री ( दादाजी ) जिन्हें स्वाध्याय परिवार के संस्थापक और दार्शनिक के रूप में जाना जाता है। उन्हें रेमन मैग्सेसे, टेम्पलटन अवार्ड, गांधी अवार्ड, तिलक अवार्ड, पद्म विभूषण जैसे विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

मनुष्य गौरव दिन क्यों मनाया जाता है?

Manushya Gaurav din Information

उनका जन्मदिन स्वाध्याय परिवार द्वारा दुनिया के लोगों के लिए गौरव के दिन ( Manushya Gaurav din ) के रूप में मनाया जाता है। यह उनके काम का त्वरित परिचय प्राप्त कराने का एक प्रयास है।

 पांडुरंगा शास्त्री ( दादाजी ) जैसे लोग केवल समाज के सुधारक नहीं हैं, उनका सार का काम समाज को एकता और समानता से उत्कर्ष की ओर ले जाता है। स्वाध्याय परिवार के प्रयासों से समाज में आशा की एक झलक दिखाई देती है, और इसीलिए देश और विदेश में लाखों स्वाध्याय परिवारों को दादाजी के काम का भरोसा है. ( Manushya Gaurav din Ki Jankari )

Download : Bhagvad Gita MP3 Audio – PDF Book Free

पांडुरंग शास्त्री ( दादाजी ) का संक्षिप्त जीवन परिचय

पांडुरंग शास्त्री आठवले का जन्म 19 अक्टूबर 1920 को रोहे कोंकण ( मुंबई ) गाँव में हुआ था। उनके जन्मदिन को ‘मनुष्य गौरव दिन’ के रूप में मनाया जाता है। पांडुरंग शास्त्री ने पारंपरिक शिक्षा के साथ ही सरस्वती संस्कृत विद्यालय में संस्कृत व्याकरण के साथ न्याय, वेदांत, साहित्य और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसाइटी मुंबई द्वारा मानद सदस्य की उपाधि से सम्मानित किया गया। इस पुस्तकालय में, उन्होंने उपन्यास खंड को छोड़कर सभी विषयों के प्रमुख लेखकों की प्रसिद्ध पुस्तकों का अध्ययन किया। वेदों, उपनिषदों, स्मृति, पुराणों पर चिंतन करते हुए। श्रीमद्भगवद्गीता पाठशाला (माधवबाग मुंबई) में, पांडुरंगशास्त्री ने अखंड वैदिक धर्म, जीवन जीने का तरीका, पूजा का तरीका और पवित्र मंच से सोचने का तरीका दिया। डॉक्टर, वकील, प्रोफेसर, इंजीनियर, व्यापारी, नियोक्ता, मजदूर, कारीगर, कलाकार, कर्मचारी, अरबपति, छात्र शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता, अर्थशास्त्री, मनोवैज्ञानिक, विद्वान, अज्ञानी, युवा, बूढ़े, महिलाएं, पुरुष, अपने शानदार विचारों को सुनने के लिए। जाती धर्म भेद को एक तरफ रख दिया गया और वे एक-दूसरे से जोशीले अभिवादन के साथ मिले।

ये भी पढ़े : बाल गंगाधर तिलक का जीवन

स्वाध्याय कार्य क्या है?

 स्वाध्याय कार्य कोई पंथ, कोई दल, कोई समूह, कोई संप्रदाय या धर्म नहीं है। ‘स्वाध्याय’ कोई संस्था भी नहीं है। तो, ‘स्वाध्याय’ क्या है? ये कोई जन आंदोलन नहीं है। स्वाध्याय की मनोवृत्ति मनुष्य को सर्वोच्च बनाती है और ईश्वर मनुष्य को ईश्वर से श्रेष्ठ बनाता है। स्वाध्याय प्रभु के कार्य करने की प्रवृत्ति है। स्वाध्याय धर्म और संस्कृति का सच्चा दृष्टिकोण है। स्वाध्याय का अर्थ है अंतरात्मा का आत्म सम्मान और लक्ष्य-सम्मान है।

किसी के ‘स्व ’को पहचानना, एक दूसरे के स्व’ का सम्मान करना और इसका अभ्यास करने का मतलब है कि’ स्वाध्याय ’. किसी भी तरह के लाभ की उम्मीद किए बिना स्वाध्याय का काम होता है। स्वाध्याय के कार्य के लिए, पांडुरंग शास्त्री ने चार सूत्र को अपनाया : 1) सुनना 2) बैठक 3) सोचना और 4) छोड़ना। मानव को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के साथ स्वाध्याय की योजना बनाई गई है।

उन्होंने ईश्वर के प्रेम के साथ जीवन के सबसे अच्छे रिश्ते को प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ आत्मनिर्भरता की नींव रखी। अपने प्रवचनों के माध्यम से उन्होंने इस विचार के श्रोताओं को तैयार किया। सप्ताह में एक बार बिना किसी लाभ के साथ मिलना ये इस परिवार की सबसे श्रेष्ठ उपलब्धि है। जैसे जब हम साधना में बैठते हैं, तो दृष्टिकोण, स्थिति, अधिकार, भावना सब को भूल जाते हैं तब हमें लगता है कि हम सभी एक ही पिता की संतान हैं। ये ही स्वाध्याय परिवार की मनोस्थिति होती है.

स्वाध्याय परिवार में ना कोई उच्च होता है ना कोई नीच. न कोई धर्म भेद है, ना कोई जाती भेद है. ना कोई बड़ा है और ना कोई छोटा है. न कोई उपदेशक है ना कोई वरिष्ठ है. सब लोग समानता के साथ खुद अपने विकास के लिए दादाजी के बताये राह पर चलते है. और इससे प्रजवलित होता है सामाजिक विकास का दैदीप्यमान दीप.

स्वाध्याय परिवार का दृष्टिकोण

 स्वाध्याय के दिव्य दृष्टिकोण से हम सभी को आशा, प्रेरणा और साहस मिलता है। प्रबल आशावाद मिलाता है कि जीवन स्वयं के प्रयासों से विकसित होगा। गीता मंत्र के माध्यम से, “सुख और दुख के भेद मिट जाते है.

USeful : Swadhyay Parivar Mobile Ringtone

  1. कर्म किये बिना कुछ मिलता नहीं है” विचार में दृढ़ विश्वास के कारण साहस बढ़ता है
  2. स्वाध्याय प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-सम्मान पैदा करता है।
  3. स्वाध्याय हर व्यक्ति को सक्रिय बनाता है।
  4. स्वाध्याय सामाजिक और मानवीय भेदभाव को दूर करता है।
  5. कोई नस्ल, जाति, पंथ के बजाय हम सभी एक ही पिता की संतान हैं और हमारे खून को बनाने वाला भी तो एक ही है ” इस विचार से भाव वृधि के साथ असमानता दूर होती है.
  6. स्वाध्याय का कार्य मनुष्य के कार्य को बढ़ाता है।
  7. स्वाध्याय भक्ति का सच्चा ज्ञान देता है। भक्ति केवल एक कार्य नहीं है, बल्कि एक दृष्टिकोण है। यह आसानी से समझता है।
  8. स्वाध्याय एकता की भावना को मजबूत करता है, सभी स्वाध्याय एक परिवार हैं, विश्व हमारा एक दिव्य परिवार है।
  9. स्वाध्याय से पारिवारिक निष्ठा, व्यवसायिक निष्ठा और आत्मगौरव को बढ़ावा मिलता है.

जरुर पढ़े : कामयाब कैसे बने – जीवन उपयोगी बातें

स्वाध्याय परिवार से होता है इस गुण का विकास

  • कृतज्ञता :

स्वाध्याय हमें कृतज्ञता सिखाता है, अपने परिवार के प्रति, इश्वर के प्रति कृतज्ञता का सच्चा दर्शन मिलाता है. मानव को ईश्वर के प्रति, संस्कृति को, गुरु को, माता-पिता को, परिवार को, समाज को और राष्ट्र को कृतज्ञता व्यक्त करना मानव जाति का कर्तव्य है।

  • अस्मिता:

आपको पता होना चाहिए कि मैं क्या हूं ? मैं क्या कर सकता हूँ? कैसा बन सकता हु? कैसे बदलना सकता हूँ? मुजमे कितनी शक्ति है? इस वृत्ति का भाव अस्मिता है। इसे पैदा करना और आत्म गौरव निर्माण करना स्वाध्याय का काम है.

  • तेजिस्विता:

स्वाध्याय सिखाता है की मै किसी भी परिस्थिति में पैदा हुआ हु लेकिन मै कोई बेचारा नहीं हु. दीन नहीं हु, किसी से लाचारी नहीं करूँगा. मै भी इश्वर की संतान हु, मुजमे भी शक्ति है, मैं कुछ भी हासिल कर सकता हूँ. इस तरह की तेजस्विता का निर्माण होता है.

  • भावपूर्णता:

मानव जीवन का दो तिहाई हिस्सा भावनाओं से भरे होते हैं। एक तिहाई हिस्सा भोग से भरा होता है. भावपूर्ण जीवन हमें जीने की नै राह दिखता है. भावजीवन पुष्ट करने का कोई मार्ग है तो वो है भगवद कार्य, जो हमें स्वाध्याय सिखाता है.

  • समर्पण:

भावपूर्ण जीवन को प्रभु के चरण में समर्पित करना सबसे बड़ा समर्पण है. समर्पण से व्यक्ति आधी, व्यादी और उपाधि के विचारो से मुक्त हो जाता है. समर्पण से ही सामाजिक भावात्मकता का विकास संभव है.

स्वाध्याय का मतलब है स्वयंशासित , प्रभुप्रेमी, आत्मश्रद्धावान, पुरुषार्थप्रिय, शास्त्रविचार को समजने वाला, संस्कृतीप्रेमी समाज तैयार करना है. जहा भक्ति को सामाजिक शक्ति माना गया है. जहाँ क्रिया के बजाय दृष्टिकोण है, वस्तु से अधिक विचार है, भोग से अधिक भाव , स्वार्थ की बजाय समर्पण, व्यक्ति की बजाय परिवार, संस्कृति से सभ्यता, भक्ति से शक्ति वाला एक ऐसा समाज निर्माण होता है।

१९९२ में उन्हें तिलक पुरस्कार प्रदान करते हुए, तत्कालीन राज्यपाल ने कहा, “विद्वता और ईश्वरीय शक्ति के मेल से, संयोजन के साथ, समाज और देश के हितों की रक्षा की जाती है। पांडुरंग शास्त्री आठवले की शिक्षाओं का, कार्यो का सभी समाज को अभ्यास करने की आवश्यकता है। पांडुरंग शास्त्री की विचारधारा आज की दुनिया में आशा की किरण हैं। ”

Happy Diwali Shayari SMS – whatsapp Status

स्वाध्याय परिवार के कार्य – प्रयोग

इस स्वाध्याय परिवार की सबसे श्रेष्ठ सफलता ये है की जहाँ डॉक्टर और किसान एक साथ बैठते है, इंजीनियर और मछुआरे साथ बैठते है. राजनेता और आदिवासी साथ में बैठते है. ये सामाजिक जीवन की सबसे उत्कृष्ट कृति है. विचार है. ना कोई गुरु बन गया है , ना कोई चेला बना है. उच्च शिक्षित – अशिक्षित, कई अलग-अलग जातियों के लोग इस परिवार में भाईचारे के साथ हर कोई अपने विकास की वृध्धि के लिए इश्वर कार्य में मग्न रहते है.

स्वाध्याय परिवार के विभिन्न प्रयोग हैं। जो भक्ति के साथ सामाजिक चैतन्य का निर्माण का काम करते है. जैसे की तत्त्वज्ञान विद्यापीठ, जहाँ पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ यहाँ दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी जाती है। मत्स्यगंधा प्रयोग, योगेश्वर कृषी, अमृतालयम, भक्तीफेरी, बालसंस्कार केंद्र, युवा केंद्र, भगिणी केंद्र, प्रवचन केंद्र, प्रार्थना मंदिर, वृक्ष मंदिर जैसे कई प्रोयोग मानव को मानव के साथ जोड़कर अस्मिता और भातृभाव, भक्तिभाव का निर्माण करते है.

 84 साल ( २००३ ) की उम्र में पांडुरंगस्थ आठवले की मृत्यु हुयी, इसके बाद धनश्री तळवळकर (दीदी) इन सभी कार्यो को संभालकर वैश्विक बनाया. आज स्वाध्याय परिवार पुरे विश्व में फैला है. और सामाजिक चेतना का कार्य कर रहा है, जो भारत के किसी धर्म संप्रदाय ने शायद नहीं किया है.

हम आज पूज्य पंदुरण शास्त्री – दादाजी को कृतज्ञता से भावपूर्ण श्रध्धांजलि के साथ हमारे विचारो को दादाजी के चरणकमल में समर्पित करते है.

ये विचार जो हमें स्वाध्याय परिवार से हासिल हुए है. शायद इसमे कोई गलती है तो ये हमारी है. इसके लिए हम क्षमा याचना करते है.

“तव चाहा परिणाम होगा दादाजी”

संदर्भ : १. एष पन्था एतत्कर्म : प्रकाशक : सद्विचार दर्शन निर्मल निकेतन, २ डॉ. भाजेकर लेन, मुंबई. २. शासनपुरस्कृत मनुवादी पांडुरंगशास्त्री आठवले, शेषराव मोरे, सुगावा प्रकाशन

Video Status Download Website

Recommended for You
You may also like
Share Your Thoughts

Leave a Reply