महापुरुषों के सर्वश्रेष्ठ सुविचार – 151 प्रेरणादायक अनमोल वचन

Mahapurusho ke suvichar. आपने कई बार ऐसी बातें सुनी होगी जो दिल को छू लेनेवाली होती है. आप ऐसी प्रेरणादायक बैटन को हमेशा के लिए याद रखना चाहते है. हमारे देश आदिकाल से महापुरुषों के विचारो के साथ चला है. भारतीय संस्कृति ऐसे महँ विचारो से आगे बढ़ी है. आज भी ऐसे सुविचार हमें प्रेरणा देते है. जीवन में आगे बढ़ने का रह दिखाते है. आज हम इस लेख में भारतीय और विदेश के महापुरुषों और संतो के प्रेरणादायी अनमोल वचन आपको बता रहे है. school – college के छात्रों के लिए, सभी युवाओ के लिए, और महापुरुषों के विचारो का रचनात्मक उपयोग करने वाले सभी को ये महापुरुषों के वाक्य सर्वश्रेष्ठ सुविचार पसंद आयेंगे.

Quotes by Famous indian personalities in hindi

महान विचारक या फिर महापुरुषों ने अपना जीवन कैसे व्यतित किया और कैसे वो महान बने? इसकी बातें तो आपने कई बार सुनी होगी. आप खुद सोच सकते है की इनके जीवन से निकली ये बाते कितनी प्रेरणात्मक और जीवन बदला देनेवाली होगी. आप यहाँ से ऐसे ही महापुरुषों के सर्वश्रेष्ठ सुविचार पढ़नेवाले है. इसे आप महापुरुषों के अनमोल वचन – सर्वश्रेष्ठ सुविचार – भी कह सकते है.

महापुरुषों के सर्वश्रेष्ठ सुविचार

महापुरुषों के सर्वश्रेष्ठ सुविचार

  • (1) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी —–महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
  • ( जननी ( माता ) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है)
  • (2) जो दूसरों से घृणा करता है वह स्वयं पतित होता है – विवेकानन्द
  • (3) कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय । उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय।। —-सन्त कबीर
  • (4) ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश। —-घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर जिले के निवासी )
  • (5) तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय ।
  • ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय ॥
  • (6) कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। -गुरू नानक
  • (7) प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं। –ईसा मसीह
  • (8) जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, गलत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद
  • (9) ज्ञानीजन विद्या विनय युक्त ब्राम्हण तथा गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल मे भी समदर्शी होते हैं ।
  • (10) यदि सज्जनो के मार्ग पर पूरा नही चला जा सकता तो थोडा ही चले । सन्मार्ग पर चलने वाला पुरूष नष्ट नही होता।
  • (11) कोई भी वस्तु निरर्थक या तुच्छ नही है । प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिति मे सर्वोत्कृष्ट है ।— लांगफेलो
  • (12) दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत । इंसान जरा सैर करे , घर से निकल कर ॥ — दाग
  • (13)विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते ।— आगस्टाइन
  • (14) दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। -डा रामकुमार वर्मा
  • (15) डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। -डॉ.मनोज चतुर्वेदी
  • (16) जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सब कुछ जीता। -अज्ञात
  • (17) अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का । — डॉ. तपेश चतुर्वेदी

महापुरुषों के अनमोल वचन

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  • (18) ऐसे देश को छोड़ देना चाहिये जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा ।–विनोबा
  • (19) विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है ।–रवींद्रनाथ ठाकुर
  • (20) आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। -महात्मा गांधी
  • (21) पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। – जयशंकर प्रसाद
  • (22) उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।–अज्ञात
  • (23) विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है । – अज्ञात
  • (24) गरीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार गऱीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। – सादी
  • (25) जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । – रामकृष्ण परमहंस
  • (26) मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। -डॉ.मनोज चतुर्वेदी

सुविचार एवं अनमोल वचन

  • (27) जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। – महात्मा गांधी
  • (28) देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’
  • (29) दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। -अज्ञात
  • (30) चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। -रवीन्द्र नाथ ठाकुर
  • (31) जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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  • (32) चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। -सत्यसांई बाबा
  • (33) अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। – प्रेमचंद
  • (34) खातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। -शरतचन्द्र
  • (35) लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है । -मुक्ता
  • (36) अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। -हरिऔध
  • (37) मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • (38) प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • (39) मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है । -गौतम बुद्ध
  • (40) स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! -लोकमान्य तिलक
  • (41) त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ
  • (42) दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। -प्रेमचंद
  • (43) अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। -जयशंकर प्रसाद
  • (44) द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। – विनोबा
  • (45) सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना । – डा शंकर दयाल शर्मा
  • (46) सारा जगत स्वतंत्रताके लिये लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। – श्री अरविंद
  • (47) सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है । एक जुल्मों के खिलाफ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । – सरदार पटेल
  • (48) तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। – वाल्मीकि
  • (49) भूलना प्रायः प्राकृतिक है जबकि याद रखना प्रायः कृत्रिम है। – रत्वान रोमेन खिमेनेस

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  • (50) हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु ।— बेन्जामिन
  • (51) हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है ।— अनोन
  • (52) कीरति भनिति भूति भलि सोई , सुरसरि सम सबकँह हित होई ॥— तुलसीदास
  • (53) स्पष्टीकरण से बचें । मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं ; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे ।— अलबर्ट हबर्ड
  • (54) अपने उसूलों के लिये , मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ , लेकिन किसी को मारने के लिये , बिल्कुल नहीं।— महात्मा गाँधी
  • (55) विजयी व्यक्ति स्वभाव से , बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।— प्रेमचंद
  • (56) अतीत चाहे जैसा हो , उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं ।— प्रेमचंद
  • (57) अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो |-– थियोडॉर रूज़वेल्ट 
  • (58) आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता |-– जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
  • (59) स्वास्थ्य के संबंध में , पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है । — मार्क ट्वेन
  • (60) मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय ।— श्रीराम शर्मा , आचार्य
  • (61) जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है।- महात्मा गांधी
  • (62) स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।
  • शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । ( यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं )
  • आहार , स्वप्न ( नींद ) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं । — महर्षि चरक
  • (63) यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं– हैरी एस. ट्रूमेन
  • (64) श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है |-– काउन्ट रदरफ़र्ड
  • (65) उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं । -गौतम बुद्ध
  • (66) कबिरा आप ठगाइये , और न ठगिये कोय । आप ठगे सुख होत है , और ठगे दुख होय ॥ — कबीर

चाणक्य के ये विचार – बदल देंगे आपका जीवन

  • (67) प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है. एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है |– अलफ़ॉसो कार
  • (68) जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती । — विनोबा
  • (69) मनुष्य की महानता उसके कपडों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से आँकी जाती है । — स्वामी विवेकानन्द
  • (70) अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते। – जानसन
  • (71) मुक्त बाजार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है। – अरुंधती राय
  • (72) अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है, मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्यायाम की | — जोसेफ एडिशन
  • (73) पढने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं ; न ही कोई खुशी , उतनी स्थायी । — जोसेफ एडिशन
  • (74) सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है | — डबल्यू एच ऑदेन
  • (75) पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है, किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है | -– रे ब्रेडबरी
  • (76) पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है, संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक नहीं होती। – जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
  • (77) यदि किसी असाधारण प्रतिभा वाले आदमी से हमारा सामना हो तो हमें उससे पूछना चाहिये कि वो कौन सी पुस्तकें पढता है । — एमर्शन
  • (78) किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं । –अज्ञात
  • (79) चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है। – सर्वपल्ली राधाकृष्णन
  • (80) हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है |हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है। – विनोबा
  • (81) भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। – स्वामी रामदेव
  • (82) ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते | -– नवाजो
  • (83) जब तुम्हारे खुद के दरवाजे की सीढ़ियाँ गंदी हैं तो पड़ोसी की छत पर पड़ी गंदगी का उलाहना मत दीजिए | -– कनफ़्यूशियस
  • (84) सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है । –संत तिस्र्वल्लुवर
  • (85) यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें | महान ध्येय ( लक्ष्य ) महान मस्तिष्क की जननी है । — इमन्स
  • (86) जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डांवांडोल स्थिति में रहना । — सुभाषचंद्र बोस!
  • (87) जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो । यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो । –इंदिरा गांधी
  • (88) विफलता नहीं , बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है । –अज्ञात
  • (89) मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है | – वेदव्यास

प्रेरणादायक अनमोल वचन

  • (90) इच्छा ही सब दुःखों का मूल है | -– बुद्ध
  • (91) भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है ? – गाथासप्तशती
  • (92) स्वप्न वही देखना चाहिए, जो पूरा हो सके । –आचार्य तुलसी
  • (93) माया मरी न मन मरा , मर मर गये शरीर । आशा तृष्ना ना मरी , कह गये दास कबीर ॥ — कबीर
  • (94) कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और स्र्आब दिखाने से नहीं । — प्रेमचंद
  • (95) आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता । –चाणक्य
  • (96) जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता । — माघ्र
  • (97) जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं । –रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • (98) जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो , वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये । — कुमार सम्भव
  • (99) विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास । एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है । –अज्ञात
  • (100) मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता | –चाणक्य
  • (101) आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं । इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता । –पंडित रामप्रताप त्रिपाठी
  • (102) कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं । –लोकमान्य तिलक
  • (103) प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं । — अज्ञात
  • (104) जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये | — वेदव्यास

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  • (105) जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं । –गौतम बुद्ध
  • (106) वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ
  • (107) अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को । –महादेवी वर्मा
  • (108) जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय | — सम्पूर्णानंद
  • (109) बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये । — यशपाल
  • (110) कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढाती है । — वीर सावरकर
  • (111) जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है , न ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धर्म है ; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ) । — भर्तृहरि
  • (112) मनुष्य कुछ और नहीं , भटका हुआ देवता है । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
  • (113) मानव तभी तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
  • (114) आदर्श के दीपक को , पीछे रखने वाले , अपनी ही छाया के कारण , अपने पथ को , अंधकारमय बना लेते हैं। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
  • (115) क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी) | -– चार्ली चेपलिन
  • (116) आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है | -– मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस
  • (117) हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो. सतह पर एकदम शांत , परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए | -– जेकब एम ब्रॉदे
  • (118) जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है | -– रॉल्फ वाल्डो इमर्सन
  • (119) अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है , तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत | -– हेनरी एडम्स
  • (120) दृढ़ निश्चय ही विजय है, जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है, जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है | -– जे पी डोनलेवी
  • (121) दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है |
  • प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं |
  • हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं | — शेक्सपीयर
  • (122) दूब की तरह छोटे बनकर रहो. जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है | – गुरु नानक देव
  • (123) यदि कोई लडकी लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बडा आकर्षण खो देती है । — सेंट ग्रेगरी
  • (124) सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है | — रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • (125) दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है,स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है । — रामधारी सिंह दिनकर
  • (126) उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। — तिरुवल्लुवर
  • (127) जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। — उत्तररामचरित
  • (128) पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है । – लार्ड बायरन
  • (129) संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास । — काका कालेलकर
  • (130) जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है | – कबीर
  • (131) गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है | – शेक्सपीयर
  • (132) कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। – मृच्छकटिक
  • (133) सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)। – हितोपदेश
  • (134) पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है । – गौतम बुद्ध
  • (135) आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता । – भगवान महावीर
  • (136) कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे । – पंडितराज जगन्नाथ
  • (137) कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए । – दर्पदलनम् 1।29
  • (138) गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है । – वासवदत्ता
  • (139) घमंड करना जाहिलों का काम है । – शेख सादी
  • (140) तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। – ओशो

हिंदी मोटीवेशनल सुविचार

  • (141) मछली एवं अतिथि , तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं । — बेंजामिन फ्रैंकलिन
  • (142) जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। – फुलर
  • (143) आंदोलन से विद्रोह नहीं पनपता बल्कि शांति कायम रहती है। – वेडेल फिलिप्स
  • (144) ‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। – स्वामी विवेकानंद
  • (145) सत्य को कह देना ही मेरा मज़ाक करने का तरीका है। संसार में यह सब से विचित्र मज़ाक है। – जार्ज बर्नार्ड शॉ
  • (146) सत्य बोलना श्रेष्ठ है ( लेकिन ) सत्य क्या है , यही जानाना कठिन है । जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो , मै इसी को सत्य कहता हूँ । — वेद व्यास
  • (147) सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है, पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है। – लिन यूतांग (148) झूठ का कभी पीछा मत करो । उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा । – लीमैन बीकर
  • (149) धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है । — डा. शंकरदयाल शर्मा
  • (150) धर्मरहित विज्ञान लंगडा है , और विज्ञान रहित धर्म अंधा । — आइन्स्टाइन
  • (151)  बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है । – अष्टावक्र

यहाँ आपने महापुरुषों द्वारा बोले गए कथन यानि सुविचार पढ़े. ये सुविचार हमें कुछ ना कुछ प्रेरणा देते है. इसमे शिक्षा, समाज जीवन, व्यक्ति का व्यवहार, एक दुसरे के प्रति भाव – प्रेम, संबंध, धर्म, भक्ति, आध्यात्म, पोजेटिव सोच, जीवन जीने का तरीका… इन सभी बातों को यहाँ पढ़ा होगा. अगर इसमे से कुछ महापुरुषों के सर्वश्रेष्ठ विचारो को भी आप अपनाएंगे तो आपके जीवन में बदलाव महसूस करेंगे और आपको एक नयी सोच मिलेगी.

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