Rama Ekadashi Vrat katha pdf Mp3 Hindi English

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रमा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा : संक्षिप्त में

इस व्रत की कथा का उल्लेख श्रीपद्म पुराण में इस प्रकार हुआ है

प्राचीन समय में मुचुकुन्द नाम का एक राजा था। जिसकी मित्रता देवराज इन्द्र, यम, वरुण, कुबेर एवं विभीषण के साथ थी। वह बड़ा धार्मिक प्रवृत्ति वाला एवं सत्यप्रतिज्ञ था। उसके राज्य में सभी सुखी थे। उसकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी, जिसका विवाह राजा मुचुकुन्द ने राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ कर दिया था।

एक दिन शोभन अपने श्वसुर के घर आया तो संयोगवश उस दिन एकादशी धी। शोभन ने एकादशी को इस व्रत को करने का निश्चय किया। चंद्रभागा को यह चिंता हुई कि उसका अति दुर्बल पति भूख को कैसे सहन करेगा? इस विषय में उसके पिता के आदेश बहुत सख्त थे। राज्य में सभी एकादशी का व्रत रखते थे और कोई अन्न का सेवन नहीं करता था। शोभन ने अपनी पत्नी से कोई ऐसा उपाय जानना चाहा जिससे उसका व्रत भी पूर्ण हो जाए और उसे कोई कष्ट भी न हो। लेकिन चंद्रभागा उसे ऐसा कोई उपाय न सुझा सकी। निरुपाय होकर शोभन ने स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़कर व्रत रख लिया। लेकिन वह भूख, प्यास सहन न कर सका और उसकी मृत्यु हो गई। इससे चन्द्रभागा बहुत दुखी हुई। पिता के विरोध के कारण वह सती नहीं हुई।

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उधर शोभन ने रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत के शिखर पर एक उत्तम देवनगर प्राप्त किया। वहां ऐश्वर्य के समस्त साधन उपलब्ध थे। गंधर्वगण उसकी स्तुति करते थे और अप्सराएं उसकी सेवा में लगी रहती थीं। एक दिन जब राजा मुचुकुन्द मंदराचल पर्वत पर आया तो उसने अपने दामाद का वैभव देखा। वापस अपनी नगरी आकर उसने चन्द्रभागा को परा हाल सनाया तो वह अत्यंत प्रसन्न हुई। वह अपने पति के पास चली गई और अपनी भक्ति और रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।

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रमा एकादशी व्रत का महत्त्व – माहात्म्य :

इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, यहां तक कि ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी दूर होते हैं। सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए यह व्रत सुख और सौभाग्यप्रद माना गया है। व्रती को ईश्वर के चरणों में स्थान मिलता है।

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रमा एकादशी व्रत पूजन विधि-विधान :

यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन उपवास रखकर प्रातःकाल के नित्य कर्म स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान् श्रीकृष्ण की विधि-विधानानुसार पूजा वआरती करें। नैवेद्य चढ़ाकर प्रसाद का वितरण भक्तों में करें। प्रसाद में माखन और मिश्री का उपयोग करें। दिन में एक बार फलाहार करें। अन्न का सेवन न करें।

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